दीक्षांत : इविवि छात्र ने जीता मुकदमा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को मा. इलाहाबाद हाईकोर्ट से लगा झटका, जाने क्या है पूरा मामला


इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन एक तरफ जहाँ दीक्षांत  समारोह में रिहर्सल करा रहा था वही दूसरी तरफ एक छात्र उसी दीक्षांत में अपनी मेडल व मेधा की लडाई माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लड रहा था। आज सुबह ही हमने एक खबर भी लिखा था जहाँ अर्थशास्त्र विभाग के एक छात्र ने दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाले मेडल में अनियमितता को लेकर याचिका डाली थी जिसकी अंतिम सुनवाई आज हुई है।

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क्या था पूरा मामला जिसके लिए छात्र ने दी याचिका

बताते चले कि अभिषेक कुमार सिंह परास्नातक अंतिम सेमेस्टर के छात्र है। आगामी दीक्षांत समारोह में उनके विभाग द्वारा प्रो. पी.डी हजेला स्वर्ण पदक दिया जाना था जिसके लिए नामो का चयन हुआ था। उस लिस्ट को चुनौती देते हुए अभिषेक ने कहा कि यह मेडल सर्वाधिक अंक के छात्र को देना है जबकि विश्वविद्यालय SGPA के आधार पर दे रहा जो कि प्रोमोशन आधारित है। जबकि सर्वाधिक अंक उनके है। इस बात को लेकर विश्वविद्यालय के सभी संबंधित अधिकारियों से गुहार लगायी थी लेकिन निराशा हाथ लगने के बाद इस विषय को लेकर अभिषेक सिंह माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के शरण में पहुंचे।

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क्या है माननीय न्यायालय का निर्णय

मा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इविवि के दीक्षांत में दिये जाने वाले प्रो पीडी हजेला गोल्ड मेडल की पूरी सूची को किया रद्द किया और सर्वाधिक अंक पाने वाले को पदक देने के लिये परीक्षा नियंत्रक को किया निर्देशित किया है। ज्ञात हो कि सोमवार 1 नवम्बर को परास्नातक अर्थशास्त्र के छात्र अभिषेक कुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुये इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ   में न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने दीक्षांत के पदकों की SGPA  के आधार पर बनाई गई पूरी सूची को आधारहीन और गलत माना। हाइकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से प्रो पी.डी हजेला गोल्ड मेडल को  SGPA के आधार पर देने पर रोक लगाई और सर्वाधिक नम्बर के आधार पर पदक देने को विश्वविद्यालय को तत्काल प्रभाव से निर्देशित किया।

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वैधानिक मानक प्रस्तुत नही कर पाया एयू

याचिकाकर्ता अभिषेक कुमार सिंह की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेन्द्र नाथ सिंह के अनुसार विश्वविद्यालय कोर्ट के समक्ष पदक वितरण के लिए अपनाये गये वैधानिक मानक नहीं प्रस्तुत कर पाया और प्रोन्नति में 10% अंकों की बढ़ोत्तरी के तर्क को खुद विश्वविद्यालय और यूजीसी के द्वारा जारी आंतरिक मूल्यांकन की आवश्यकता के नियम के विरुद्ध कोर्ट ने पाया। बकौल पैरवीकार अमरेन्द्र प्रताप सिंह कोर्ट के संस्कृत और दर्शनशास्त्र में अपनाये गये तरीके की कोर्ट के समक्ष व्याख्या के निर्देश पर भी विश्वविद्यालय व्याख्या नहीं कर पाया। मुख्य रूप से कोर्ट ने इविवि की परीक्षा समिति को वैधानिक बाडी नहीं माना और  SGPA के निर्धारण, अंकों को सामान्य प्रोन्नति में बढाने के तरीके को भी दोषपूर्ण माना। 

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अन्य विषय भी संदेहास्पद पर कोर्ट ने दी रियायत 

सात पेज के निर्णय के अंत में कोर्ट के याचिका के पैरा नम्बर 5, 10 और 16 का विश्वविद्यालय के पास कोई समुचित उत्तर न होने पर हाईकोर्ट ने अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, संस्कृत इत्यादि विषयों की  SGPA के आधार पर तैयार पूरी पदक सूची को रद्द करने के योग्य पाया लेकिन प्रस्तावित दीक्षांत को ध्यान में रखकर पी डी हजेला की  SGPA के आधार पर तैयार पूरी सूची को रद्द किया और अंततः अर्थशास्त्र में सर्वाधिक अंक पाने वाले को प्रो० पी०डी० हजेला स्वर्ण पदक देंने के लिए मुख्य परीक्षा नियंत्रक और रजिस्ट्रार को तत्काल प्रभाव से आदेशित किया।

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अब देखना है इलाहाबाद विश्वविद्यालय माननीय न्यायालय के फैसले पर कितना जल्दी कार्रवाई करते हुए सर्वाधिक अंक पाने वाले अर्थशास्त्र विभाग के छात्र को मेडल के लिए आमंत्रित करता है।

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